बिटिया चली स्कूल
प्रतियोगिता हेतु रचना
बिटिया चली स्कूल
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नारी शिक्षा की देवी हैं
मां सरस्वती कहलाती हैं
शिक्षा, ज्ञान योग्यता हेतु
माता ही पूजी जाती हैं
निर्धन की होनहार बेटी ने
पिता से अपने विनती की
अपने दिल में अरमान लिए
अनुनय विनय समर्पित की
मुझको भी स्कूल भिजा दे
मैं भी पढ़ने को जाऊंगी
पढ़ लिख कर बन जाऊं
कलक्टर तेरा नाम बढ़ाऊंगी
पिता असमर्थ था पैसों से
बेटी की विनती ठुकरा दी
बेटी मैं तुमको पढ़ा ना सकूंगा
अश्कों से दिल की बातें की
बेटी ने फिर कर मजदूरी
स्कूल में दाखिला ले डाला
होनहार उस बेटी ने फिर
उच्च ज्ञान भी ले डाला
पदक विजेता उस बेटी ने
मां,बाप को एक उपहार दिया
बिना बताए मां बाप के हाथ मेआई ए एस का तमगा थमा दिया
मां ,बाप के आंशू थमें नहीं
बेटी के चरणों को धो डाला
फिर अश्क पोंछ मां खड़ी हुई
अंको की पहनाई माला
बेटी तू तो घर की देवी है
मैं तेरा कैसे गुणगान करूं
तू तो बेटे से बढ़ कर है
मैं चरणों को तेरे नमन करूं
मैं आज शपथ ये लेती हूं
तुमको मैं खूब पढ़ाऊंगी
बेटी-बेटे दो नयन मेरे
दोनों को आगे लाऊंगी
धन दौलत तो लुट जाते हैं
पर शिक्षा, ज्ञान नहीं लुटता
बच्चों को बस शिक्षा देना
जो अन्त समय तक है रहता
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
RISHITA
21-Mar-2024 06:14 AM
Amazing
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Mohammed urooj khan
19-Mar-2024 11:48 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Alka jain
19-Mar-2024 01:46 PM
Nice
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